“स्तनों को पकड़ना, पाजामे का नाड़ा तोड़ना और पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश करना बलात्कार की कोशिश नहीं!”, ये बयान है इलाहाबाद हाईकोर्ट( Allahabad High Court) का। जहां एक नाबालिग लड़की के साथ कथित बलात्कार यानी POCSO मामले में अदालत ने ये टिप्पणी दी। इस फैसले के बाद एक सवाल उठता है। क्या यौन शोषण को अपराध मानने के लिए अब उसके ‘पूरा होने’ का इंतजार किया जाएगा? क्या किसी पीड़िता की चीखें, उसकी तकलीफें सिर्फ ‘किसी बड़े क्राइम की भूमिका’ भर हैं? चलिए विस्तार से पूरा मामला जानते है।
क्या है पूरा मामला जानिए Allahabad High Court
दरअसल ये सारा मामला है कासगंज जिले का है। जहां रहने वाले पवन और आकाश पर एक 11 साल की नाबालिग लड़की से रेप करने की कोशिश का आरोप लगा है। कथित तौर पर इन दोनों ने एक 11 साल बच्ची को लिफ्ट दी। बच्ची उनके दूर के रिश्ते में आती थी। जब बच्ची उनके साथ बाइक पर बैठ गई तो इन दोनों आरोपी ने सुनसान इलाके में बाइक रोकी। जिसके बाद उन्होंने बच्ची को स्तनों से पकड़ा उसके पायजामे का नाड़ा फाड़ दिया और उसे पुलिया के नीचे खिचने की कोशीश की। हालांकि उसी वक्त कुछ राहगीरों ने उसे देखा और उसे बचा लिया।
IPC धारा 376 के तहत मुकदमा दर्ज
इस पूरी घटना के दौरान आरोपी मौके से फरार हो गए। बच्ची के घर वालों ने पुलिस में शिकायत दर्ज की। जांच हुई और पुलिस ने POCSO के साथ धारा 376 के तहत मुकदमा दर्ज करते हुए दोनों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया। कानून की किताब के मुताबिक IPC धारा 376 ( BNS धारा 64) लगने पर बलतकारी के लिए कड़ी सजा का प्रावधान है। जिसके तहत जिला अदालत ने दोनों आरोपियों को पेश होने का नोटिस जारी कर दिया।
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निचली अदालत के समन को आरोपियों ने हाईकोर्ट में चुनौती दी। अपनी याचिका में उन्होंने कहा की हमने आईपीसी की धारा 376 के तहत कोई अपराध नहीं किया है। ये अपराध आईपीसी की धारा 354 और 354(B) यानी निर्वस्त्र करने के इरादे से हमला या आपराधिक बल का प्रयोग और पोक्सो अधिनीयम के प्रासंगिक प्रावधानों की सीमा से आगे का नहीं है।
कोर्ट ने कहा रेप की कोशिश नहीं!
हाईकोर्ट ने भी इसपर सहमती जताई और आरोपियों के इस तर्क को मान लिया। 17 मार्च 2025 को दिए अपने आदेश में जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा ने कहा कि रेप की कोशिश का आरोप लगाने के लिए ये साबित करना होगा कि ये तैयारी के चरण से आगे की बात थी। अपराध करने की तैयारी और वास्तविक प्रयास के बीच अंतर होता है।
हालांकि इस बयान के सामने आने के बाद काफी बवाल हुआ। अदालत ने कहा इस मामले के तथ्यों को देखते हुए आरोपियों के खिलाफ धारा 354(बी) और पॉक्सो अधिनियम की धारा 9 के तहत समन जारी किया जाना चाहिए। जो एक नाबालिग बच्चे के साथ गंभीर यौन अपराध के लिए दंड की व्यवस्था देती है।
हालांकि ये पहली बार नहीं है जब किसी हाई कोर्ट ने ऐसा फैसला दिया हो। कुछ वक्त पहले बॉबे हाई कोर्ट ने भी कुछ ऐसा ही कहा था कि बीना कपड़े उतारे यौन शोषण नहीं हो सकता। ऐसे फैसलों से कहीं ना कहीं ये लगता है कि इन संवेदनशील मामलों में न्याय के पहले ये देखना जरूरी होगा कि अपराधी ने पूरा गुनाह किया कि नहीं।