6 अगस्त साल 1978!, 47 साल पहले भी यहां आई थी त्रासदी, Uttarkashi में तबाही की ये है बड़ी वजह

Uttarkashi Cloudburst 6 Aug 1978 Kanodia Gad: उत्तरकाशी के धराली गांव(Dharali) का भयावह दृश्य अभी भी आंखों के सामने ताज़ा है। मलबे में दबी दुकानें, टूटी सड़कें और ढे़र सारा पानी और कई लोग अभी भी लापता। उत्तरकाशी में कई जगहों पर बादल फटने के बाद ये त्रासदी का मंजर देखने को मिला। लेकिन आखिर धराली में ये आपदा आई कैसे? अगर आप भी ये जानना चाहते है तो ये आर्टिकल आपके लिए है।

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47 साल पहले भी यहां आई त्रासदी Uttarkashi Cloudburst 6 Aug 1978 Kanodia Gad

इत्तेफ़ाक़ कहिए या नियति, 6 अगस्त साल 1978, में इसी जगह से कुछ ही किलोमीटर नीचे कनोडिया गाड़(kanodia gad landslide) ने भी अपना रौद्र रूप दिखाया था। बताते चलें कि गाड या गाद कोई साधारण जलधाराएं नहीं होती बल्कि ये अपने साथ कई बड़े बोल्डर, बारीक मिट्टी और मलबा लेकर आती हैं।

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जिसे सिल्ट और मड कहा जाता है और ये सब लेकर ये नदियों तक पहुंचाती है। उस दौरान डबराणी में गंगा का बहाव तक थम गया था। अब 47 सालों बाद धराली की खीर गांगा में बाढ़ आ गई।

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खीर गंगा के ऊपर श्रीखंड की पहाड़ी काफी वक्त से टूट रही

इंडिया वाटर पोर्टल के एक लेख के मुताबिक देश में पर्यावरण को लेकर जो चिंता जताई जाती है वो अक्सर सिर्फ़ बड़ी नदियों तक सीमित रह जाती है। मगर जो छोटी नदियां इन बड़ी धाराओं को जन्म देती हैं उनकी सुध लेना हम भूल जाते हैं। खीर गंगा के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ खीर गंगा के ऊपर श्रीखंड की पहाड़ी मौजूद है जो काफी वक्त से टूट रही थी। वहां के लगातार पिघलते ग्लेशियरस को लोग नजरअंदाज करते आ रहे थे।

18वीं सदी में भी आई बड़ी आपदा

इतिहास देखें तो ये पहली बार नहीं है जब खीर गंगा में बाढ आई। बल्कि इससे पहले 18वीं सदी में भी खीरगंगा की वजह से बड़ी आपदा आई थी। जिसमें यहां का प्रसिद्ध कल्पेश्वर मंदिर का बड़ा हिस्सा मलबे के अंदर दब गया था। साल 2013-14 में भी धराली में बाढ़ आई थी।

पहले ऐसा दिखता था धराली

धराली की जीयोग्राफी की बात करें तो जो मेन धराली गांव है। वो ऊंचाई पर बसा हुआ है और जहां आपदा आई वो धराली बाजार था। एक जमाने में इस बाजार की जगह घाट, घराट और गौचरान होते थे।मगर विकास होने के साथ ही ये तस्वीर बदल गई पर्यटन के दबाव और आधुनिकता की अंधी दौड़ में लोग नीचे, नदी के करीब बसने लगे। वो ज़मीन जो कभी फ्लड ऐरीया यानें बाढ़ क्षेत्र हुआ करती थी।

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फ्लड प्लेन में बना डाले होमस्टे

अब वहां पक्की इमारतें हैं, होमस्टे हैं, दुकानें हैं। खीरगंगा के इस फ्लड प्लेन में आज इतनी बसावट हुई है। गंगा लेफ्ट में जाकर भागीरथी से मिल रही है। यानी आप इसे उल्टी गंगा बहना भी कह सकते हैं। लेकिन नदीया कभी ना कभी अपना रास्ता वापस लेती है। इसका उदाहरण कुछ वक्त पहले हमने केदारनाथ में देखा था। ऋषिगंगा में भी कुछ ऐसा ही हुआ था।

इसके लिए सरकार जिम्मेदार?

इसके पीछे क्लाइमेट चेंज का भी बहुत बड़ा रोल है। ऊंचे इलाकों में जहां भारी बारीश कभी नहीं होती थी। वहां अब मोटी बूंदों वाली बारीश पड़ रही है। डॉ एस पी सती की मानें तो फ्लड प्लेनस में बसावट की वजह सिर्फ यहां के लोगों का लालच ही नहीं है बल्कि सरकार भी इसके लिए जिम्मेदार है

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