35 साल बाद मिले 24 स्कूल के दोस्त उत्तरकाशी आपदा में लापता, धराली की घटना के बाद कोई सुराग नहीं

उत्तरकाशी(Uttarkashi) के धराली (Dharali) में आई भारी तबाही के बाद अब भी कई लोग लापता हैं। NDRF, SDRF, सेना आदि रेस्क्यू टीमें मौके पर जुटी हैं। लेकिन हालात इतने खराब हैं कि मलबा हटाने और लापता लोगों को ढूंढ़ने में काफी दिक्कतें आ रही हैं। अभी तक 6 लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है। लेकिन अभी भी 50 से अधिक लोग लापता हैं।

इन लापता लोगों में एक ऐसा समूह भी है। जिसकी कहानी सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है। महाराष्ट्र से आए 24 पुराने दोस्त जो 34 साल बाद दोबारा मिले थे और साथ घूमने निकले थे। वो भी उत्तरकाशी आपदा की चपेट में आ गए है।

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35 साल बाद मिले 24 स्कूल के दोस्त उत्तरकाशी आपदा में लापता

पुणे के पास मंचर इलाके के ‘आवासी खुर्द’ गांव में एक स्कूल है जहां 1990 में दसवीं क्लास के ये 24 दोस्त पढ़ते थे। फिर जिंदगी में सब अपने-अपने रास्ते चले गए। लेकिन अब करीब साढ़े तीन दशक बाद सबने मिलकर एक प्लान बनाया था चार धाम यात्रा पर साथ निकलने का।

एक अगस्त को सब पुणे से रवाना होकर उत्तराखंड आए। उनका 12 अगस्त को दिल्ली होते हुए वापस लौटने का प्लान था। लेकिन गंगोत्री से करीब 10 किलोमीटर दूर पहुंचते ही सबकुछ बदल गया।

भूस्खलन में फंसे सारे दोस्त

सोमवार शाम करीब 7 बजे इस ग्रुप के सदस्य अशोक भोर ने अपने बेटे आदित्य आदित्य से बात की थी। जिसमें उन्होंने बताया कि सभी उस वक्त भूस्खलन में फंसे हुए थे। इसके बाद से पूरे ग्रुप से संपर्क टूट गया। कोई फोन नहीं लग रहा। सभी नंबर या तो बंद हैं या नेटवर्क से बाहर हैं।

महाराष्ट्र के 149 पर्यटक फंसे

सरकारी आंकड़ों की मानें तो उत्तराखंड में महाराष्ट्र के कुल 149 पर्यटक फंसे हुए हैं। इनमें से सबसे ज़्यादा 76 मुंबई के, 17 छत्रपति संभाजीनगर, 15 पुणे, 13 जलगांव, 11 नांदेड़, और ठाणे, नासिक व सोलापुर से चार-चार लोग हैं। मालेगांव से तीन और अहिल्यानगर से एक व्यक्ति भी उत्तरकाशी में फंसा हुआ है।

इन 149 लोगों में से करीब 75 से अभी तक कोई संपर्क नहीं हो पाया है। घरवाले परेशान हैं। लेकिन अब भी उम्मीद बांधे हुए हैं कि किसी तरह सब सुरक्षित मिल जाएं।

रेस्क्यू ऑपरेशन तेज

राज्य आपदा प्रबंधन विभाग की ओर से राहत और बचाव कार्यों को तेज कर दिया गया है। मौसम की चुनौती और रास्तों की हालत को देखते हुए रेस्क्यू टीमों को मुश्किलें तो आ रही हैं। लेकिन कोशिश पूरी जी-जान से की जा रही है।

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