दिल्ली: छठ पर्व, कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाने वाला एक पवित्र और कठिन व्रत है, जिसमें संतान की सुख-समृद्धि के लिए सूर्य देवता को अर्घ्य अर्पित किया जाता है। यह पर्व चार दिनों तक चलता है, जिसमें मुख्य व्रत इस बार 7 नवंबर 2024, गुरुवार को मनाया जाएगा। इस दिन श्रद्धालु डूबते सूर्य को अर्घ्य देंगे और 8 नवंबर को उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करके व्रत का समापन करेंगे।
छठ पूजा की पौराणिक कथा: कैसे हुई थी शुरुआत?
पौराणिक मान्यता के अनुसार, राजा प्रियव्रत और उनकी पत्नी संतानहीन होने के कारण दुखी थे। संतान प्राप्ति की इच्छा से उन्होंने महर्षि कश्यप के मार्गदर्शन में यज्ञ किया। हालांकि, पुत्र का जन्म मृत अवस्था में हुआ, जिससे राजा और रानी अत्यंत दुखी हुए। राजा ने पुत्र वियोग में आत्महत्या का संकल्प लिया, तभी देवी षष्ठी प्रकट हुईं। उन्होंने राजा को पुत्र रत्न देने का वचन दिया, बशर्ते वे उनकी पूजा करें। राजा ने कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथि को व्रत रखा और उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। तब से यह परंपरा चली आ रही है और हर साल श्रद्धालु इसे बड़ी श्रद्धा से मनाते हैं।
छठ पूजा का महत्व: क्यों दिया जाता है सूर्य को अर्घ्य?
छठ पूजा में सूर्य को अर्घ्य देने का विशेष महत्व है, क्योंकि सूर्य देवता को ऊर्जा, स्वास्थ्य और संतान की रक्षार्थ माना जाता है। यह पूजा चार दिनों तक विशेष नियमों और कठिन तप के साथ की जाती है।
8 नवंबर 2024, शुक्रवार को सुबह 6:38 बजे उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही व्रत का पारण होगा और व्रतियों द्वारा प्रसाद ग्रहण किया जाएगा।
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नोट: यह जानकारी पौराणिक मान्यताओं पर आधारित है। इसे अपनाने से पहले किसी विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें।