देहरादून: देहरादून मेट्रो परियोजना पर असमंजस की स्थिति ने एक बार फिर शहरवासियों की उम्मीदों को झटका दिया है। साल 2017 में बड़े सपने और वादों के साथ शुरू हुई इस परियोजना की दिशा अब तक तय नहीं हो सकी है। मेट्रो नियो प्रोजेक्ट को लेकर केंद्र सरकार की चुप्पी और राज्य सरकार के धीमे कदम से परियोजना अधर में लटक गई है।
फंड जुटाने के लिए PIB के पाले में गेंद
मेट्रो प्रोजेक्ट का प्रकरण अब पब्लिक इन्वेस्टमेंट बोर्ड (PIB) को सौंपा गया है, जो फंड की व्यवस्था पर निर्णय करेगा। हालांकि, थर्ड पार्टी ऑडिट के नाम पर परियोजना की उपयोगिता को परखने का नया चरण शुरू हो चुका है।
35 करोड़ खर्च, फिर भी नतीजा शून्य
अब तक मेट्रो परियोजना पर 35 करोड़ रुपये से अधिक खर्च हो चुके हैं। जबकि राज्य के वित्त विभाग का दावा है कि यह आंकड़ा 80 करोड़ रुपये को पार कर चुका है। खर्च में काम्प्रिहेंसिव मोबिलिटी प्लान, विदेश यात्राएं और अन्य तैयारी शामिल हैं।
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2,300 करोड़ का बजट: सरकार की हिचकिचाहट
परियोजना की अनुमानित लागत 2,300 करोड़ रुपये बताई गई है। राज्य सरकार इतनी बड़ी राशि के निवेश का साहस नहीं जुटा पा रही है। इसी कारण मैकेंजी कंपनी को थर्ड पार्टी ऑडिट के लिए जिम्मेदारी सौंपी गई है।
नियो मेट्रो: फायदे में चलने का दावा
उत्तराखंड मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन (UMRC) के अनुसार, नियो मेट्रो सालाना 672 करोड़ रुपये की आय कर सकती है। इसके मुकाबले खर्च केवल 524 करोड़ रुपये होगा, जिससे यह परियोजना फायदे में रहेगी।
मेट्रो नियो की खासियतें
- कम लागत: पारंपरिक मेट्रो से 40% कम।
- एलिवेटेड कॉरिडोर: सड़क के डिवाइडर पर बनाया जा सकता है।
- शहर के लिए मुफीद: 20 लाख तक की आबादी वाले शहरों के लिए।
22.42 किमी के दो कॉरिडोर तैयार
परियोजना के तहत 22.42 किमी लंबे दो कॉरिडोर बनाए जाएंगे, जिनमें 25 स्टेशन होंगे।
- आईएसबीटी से गांधी पार्क: 81,292 यात्री प्रतिदिन।
- एफआरआई से रायपुर: 88,463 यात्री प्रतिदिन।
क्या देहरादून मेट्रो सपना अधूरा रह जाएगा?
राज्य सरकार को अब निर्णायक कदम उठाने होंगे। लंबित निर्णयों और बढ़ते खर्च ने पहले ही वित्तीय बोझ बढ़ा दिया है। अगर समय पर ठोस कदम नहीं उठाया गया तो देहरादून मेट्रो का सपना अधूरा रह सकता है।





