देहरादून की एक आर्ट गैलरी (art gallery dehradun) में रखी बंद घड़ियां अपने भीतर सैंकड़ों सालों का इतिहास समेटे हुए हैं. ये घड़ियां अब भले ही वक्त नहीं बताती लेकिन गुजरे दौर का समय अपने भीतर जरूर समेट के रखे हुए हैं.
मेज पर रखे इन कैमरों ने न जाने कितने लोगों की यादों को अपने भीतर समेटा होगा. लेकिन यही कैमरे अब यादों के सहारे रह गए हैं. देहरादून की आर्ट गैलरी में रखे ये एंटीक सामान बीते वक्त की ठहरी हुई दास्तान को सुना रहे हैं.
अमर सिंह धुंता के कलेक्शन में एक से बढ़कर एक एंटीक पीस आपको मिल जाएंगे. चाहें वो 1971 के दौरान तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान यानी आज के बांग्लादेश के एक रेलवे स्टेशन से लाया गया दीए वाला सिग्नल हो या फिर तकरीबन 80 साल पुराना रेडियो.
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प्रदर्शनी के एक हिस्से में बीते जमाने के कैमरों का कलेक्शन रखा है. इस कलेक्शन में रखे शुरुआती शटर वाले कैमरों को देखकर एक बारआप भी हैरान रह जाएंगे कि तकनीक कैसे बदलती गई और शुरुआत कैसे पीछे छूटती गई.
एंटीक के इसी कलेक्शन में चौसर भी रखी है. ये वही चौसर का खेल है जिसका जिक्र महाभारत में मिलता है. अब हम मोबाइल में पूरी मूवी देख लेते हैं तो वहीं एक दौर ऐसा भी था जब सिर्फ गाने सुनने के लिए भी ग्रामोफोन जैसे बड़े इंस्ट्रूमेंट का प्रयोग करना पड़ता था. एंटीक के इस कलेक्शन में रखे ये ग्रामोफोन अब खामोशी का संगीत सुनाते हैं.
अमर धुंता के इसी कलेक्शन के एक हिस्से में आपको इंद्रजाल की कहानियों और नागराज के कॉमिक्स के सेट भी दिख जाते हैं. इंस्टागाम की रील्स और स्नैपचैट के इस दौर में मौजूदा पीढ़ी के लिए ऐसी किताबें देखना अब मुमकिन नहीं होगा.
हालांकि बीते वक्त के साथ कोई चलना नहीं चाहता लेकिन सच ये भी है कि बीते वक्त की निशानियों को देखना हमेशा से आपको एक रोमांचक अनुभव देता रहा है.